मैं बात जेलों की करती हूँ। लेकिन अब जेल हर तरफ है। इसलिए आज की बात उन सभी के लिए जो जेल में हैं। वे जेल जिसमें दिखती हैं सलाखें और वो जेल भी जिसमें सलाखें दिखती तो नहीं और वो ज़िंदगी भी सलाखों से काम बदतर नहीं। यह कोरोना की बनाई हुईं जेलें हैं। इसलिए आज मेरी बात के दायरे में है सांसें। यह वक्त मुश्किल है पर साँसे फिर से दम भरेंगी। वो फिर से उठेंगी, फिर चलेंगी, बहेंगी, झूमेंगी, गुनगुनाएंगी। इस पॉडकास्ट का ऑडियो संपादन हर्षवर्धन ने किया है।