तेली का तोता - रुमी
एक तेली ने एक तोता पाल रखा था। तोता बड़ा बुद्धिमान था। वह तरह तरह की बोलियां बोलता था। उससे बात कर तेली बहुत ख़ुश हुआ करता था। तेली की ग़ैरेहाज़िरी में तोता ही उसकी दुकान की देख-भाल किया करता था।
एक दिन जब तोता दुकान में अकेला था, एक बिल्ली अंदर घुस गई। बिल्ली तोते के ऊपर झपटी। तोता प्राण बचाने के लिए इधर-उधर उड़ने लगा।
उड़कर • उसने अपनी जान तो बचा ली लेकिन इस कूद-फांद की वजह से तेल का एक पीपा लुढ़क गया। सारा तेल बह गया।
जब तेली वापस लौटा तो दूकान की दशा देखकर वह बड़ा नाराज़ हुआ। उसे लगा कि तोते ने ही पीपा गिराया है। उसने गुस्से में आव देखा न ताव और तोते के सिर पर एक धील जड़ दिया। इस चोट के कारण तोता बोलने की ताकत खो बैठा। साथ ही उसके सारे पंख भी झड़ गए।
एक दिन एक गंजा आदमी तेली की दुकान के सामने से गुजरा। उसे देखते ही सहसा तोता चीख पड़ा, “भाई, तुमने किस के तेल का पीपा गिराया था?"
गंजा हंसा। वह समझ गया कि बुढ़ापे के कारण हुए उसके गंजेपन को
तोता अपने परों के झड़ने की घटना से जोड़ रहा है।
इस कथा में दो संदेश छिपे हुए हैं। पहला संदेश यह है कि गुस्से में बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। तेली की नासमझी एक सुंदर पक्षी को गूंगा और बदसूरत बना दिया था। दूसरा यह कि सामान्यतः आदमी अपने अनुभवों के आधार पर ही दूसरे की स्थिति को परखता है। यथार्थ अलग हो सकता है। बाहरी तौर पर दिखाई पड़ने वाली बात हमेशा सच हो, यह जरूरी नहीं।