शहरी आपधापी में जो कुछ जरूरी चीजें हमसे छूट रही हैं, उनमें साहित्य और प्रकृति भी है. प्रकृति जहां आपके शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है, वहीं साहित्य का आपके मानसिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है. क्या ये सही नहीं है कि शहरी युवाओं में तेजी से बढ़ते हुए तनाव का भी यही कारण है. वो न तो खुलकर सांस ले पा रहे हैं और न ही अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे रहे हैं.
हमारे आज के पोडकास्ट में, हमारी होस्ट मोहिनी गुप्ता राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम से बात कर रही हैं. सत्यानंद किताबों के संपादन के साथ ही हिंदी साहित्य को भी एक आकार प्रदान कर रहे हैं. साहित्य में उनके द्वारा किये गए नए प्रयोगों की अक्सर ही चर्चा होती है. इस सम्पादकीय व्यक्तित्व के साथ ही, एक प्रकृति प्रेमी के रूप में भी उनकी झलक अक्सर देखने को मिलती है| आज के इस पोडकास्ट में इन्हीं सब भूमिकाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है.
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