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Description

समाज में अपना चेहरा बचाने के लिए क्या दोनों लिंग झूठ का सहारा लेते है? क्या एक स्त्री का ग़रूर और गहनों के प्रति मोह उसके पति को बर्बादी की ओर ले जा सकता है? अनुवाद श्रृंखला के इस आखरी एपिसोड में, सुभाषिनी, क्रिस्टोफर र. किंग द्वारा अनुवादित प्रेमचंद की “गबन” की समीक्षा करती है। उन्होंने भारतीय समाज और घरबार के आस-पास के कई पहलूों पर कहानी पिरोयी है जिसमें लिंग असमानता और भ्रष्टाचार भी शामिल है।

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