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मन के भ्रमजाल से कैसे मुक्ति मिलेगी? 

How to get rid of the control of desires?

अक्सर मनुष्य अपना सारा जीवन अपने मन के अनुसार कार्य करने में व्यतीत करता है। वो सोचता है मन ही राजा है पर असल में मन भिखारी है जिसे कभी तृप्ति नहीं मिलती। ये मनुष्य से तरह तरह की यात्रायें कराता है। ढेर सारा अच्छा भोजन करके जब तृप्ति नहीं मिलती तो  ये मन उपवास शुरू करा देता है। जब धन से तृप्ति नहीं मिलती, त्याग शुरू करा देता है। एक संसारी व्यक्ति इस मन के भ्रमजाल में ही फस के रह जाता है। आखिर इस मन की दुविधा और इसके भ्रमजाल से मुक्ति का मार्ग क्या है और अगर मन भिखारी है तो सम्राट कौन है?

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