भावार्थ...
इस भजन के माध्यम से भगवान कृष्णा और सुदामा जी की घनिष्ठ मित्रता का बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है! श्री कृष्णा और सुदामा जी बचपन के मित्र थे और सुदामा जी एक बहुत गरीब ब्राह्मण थे! जब एक बार सुदामा जी के मन में ख्याल आता है कि उन्हें अपने मित्र श्री कृष्णा से मिलना चाहिए तो वह उन्हें मिलने के लिए द्वारिका जाते हैं और जब श्री कृष्णा को पता चलता है कि मेरा मित्र मुझसे मिलने आया है तो श्री कृष्णा नंगे पांव ही दौड़ते दौड़ते अपने मित्र से मिलने पहुंच जाते हैं यह दृश्य देखकर द्वारिका के सारे लोग दंग रह जाते हैं! यह प्रसंग हमें सिखाता है कि हमारा एकमात्र सच्चा रिश्ता केवल और केवल भगवान श्रीहरि से ही है हमें भगवान के साथ अपना एक विशेष संबंध जरूर बना कर रखना चाहिए और भगवान उस विशेष संबंध को जरूर निभाते हैं!
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