भावार्थ...
इस भजन के माध्यम से एक भक्त भगवान श्री हरि से प्रार्थना कर रहा है कि हे प्रभु मैं आपके श्री चरणों की भक्ति करना चाहता हूं लेकिन मेरा मन माया में बुरी तरह से फंसा हुआ है मैंने अपने चारों ओर अपनी इच्छाओं का जंजाल बना दिया है जिससे मैं चाह कर भी इसे बाहर नहीं निकल पा रहा हूं! हे प्रभु आप तो करुणानिधान है! मैं आपकी शरण में आना चाहता हूं! इसलिए आप मुझ अधम पर कृपा कीजिए! आपकी कृपा से ही मैं इस भौतिक संसार के बंधनों को तोड़ सकता हूं और आपके चरणों की शुद्ध भक्ति को प्राप्त कर सकता हूं! अतः कृपा करके मेरा मार्गदर्शन कीजिए! इस प्रार्थना में शुद्ध शरणागति के भाव को दर्शाया गया है! इस दिव्य प्रार्थना को हमें रोज दोहराना चाहिए ताकि प्रभु श्री हरि के चरणों की शुद्ध भक्ति हमें प्राप्त हो सके!
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