आठों योग सीढ़ियों को प्राप्त करने वाले चिरंजीवी हनुमान जी ने अपना ब्रह्म ज्ञान और अनुभव बाँटने के लिए कुछ विशेष आदिवासी शिष्य चुने। उन्होंने वचन दिया था की वे हर ४१ वर्ष पश्चात् अपने शिष्यों की नयी पीढ़ियों से मिलने आएंगे। और उन्हें स्वयं ज्ञान प्रदान करेंगे। उसी शाश्वत वचन को निभाते हुए वो इस बार भी आये। घने जंगल से आच्छदित एक पर्वत पर उन्होंने अपने शिष्यों को प्राचीन ज्ञान नवीन ढंग से प्रदान किया। एक दिव्या लीला के अंतर्गत यह ज्ञान जंगल से बहार कलिहानुवाणी के रूप में पहुँच रहा है।