एक तालाब में एक कछुआ रहता था. कछुआ बड़ा बातूनी था. वह जब तक किसी से बात न कर लेता, उसका भोजन हजम नहीं होता था. एक बार जब वह बोलना शुरू करता तो बोलता ही जाता था. वह कभी यह सोचता तक नहीं था कि उसकी बातें सुनने वाले को अच्छी भी लग रही हैं या नहीं.

उसी तालाब के किनारे दो बगुले भी रहा करते थे. कछुए ने उन दोनों बगुलों से मित्रता कर ली थी. वह रोजाना देर तक उन दोनों से बतियाता रहता था, या यूँ कहें कि अपनी बातों से उन्हें पकाया करता था क्योंकि बगुले अक्सर कछुए की बातों से ऊब जाते थे.
लेकिन दोनों बगुले स्वभाव से सज्जन थे अतः कछुए से कुछ कहते नहीं थे, हालांकि वे समझते थे कि कछुए को बातें करने का रोग है.
एक बार उस क्षेत्र में वर्षा नहीं हुई और जोरों का अकाल पड़ गया. तालाब का पानी सूख चला तो जल पर निर्भर जीवों के जीवन पर संकट आ गया. दोनों बगुलों ने विषम परिस्थिति को देखते हुए अन्य किसी वर्षा वाले क्षेत्र में जाना तय किया.
उधर तालाब सूख जाने के कारण कछुए का जीवन भी संकट में आ गया था लेकिन उसमें बगुलों की तरह उड़ने की शक्ति तो थी नहीं, अतः वह कहीं जा नहीं सकता था, परन्तु जाना अवश्य चाहता था.
बगुलों ने जब जाने की तैयारी कर ली तो वे विदा मांगने कछुए के पास गए. कछुआ बगुलों के मुँह से जाने की बात सुनकर बड़ा दुखी हुआ और कहने लगा - "तुम दोनों तो जा रहे हो लेकिन मुझे यहाँ किसके सहारे छोड़े जा रहे हो?"
बगुलों ने कहा - "क्या करें भाई, तालाब का पानी सूख गया है. यहाँ अब जीवन का निर्वाह होना कठिन है. हमें भी तुम्हें छोड़ कर जाते हुए कष्ट हो रहा है, लेकिन क्या करें विवशता है."
कछुआ बोला - "हाँ बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन क्या तुम दोनों मुझे भी अपने साथ लेकर नहीं चल सकते ?"
बगुलों ने उत्तर दिया - "तुम हमारे साथ कैसे चल सकते हो ? तुम हमारी तरह उड़ तो सकते नहीं ?"
कछुए ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया - "हाँ मैं उड़ तो नहीं सकता लेकिन एक उपाय है. यदि तुम दोनों चाहो तो उस उपाय से मुझे भी अपने साथ ले चल सकते हो."
बगुलों ने पूछा - "बताओ तो, वह कौनसा उपाय है ?"
कछुए ने कहा - "कहीं से ढूंढकर एक लम्बी सी पतली लकड़ी ले आओ. तुम दोनों उस लकड़ी के एक - एक सिरे को अपनी चोंच में दबा लेना और मैं लकड़ी के बीच में दांतों से पकड़कर लटक जाऊँगा. इस तरह मैं भी तुम्हारे साथ साथ चल सकता हूँ.