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Description

वह एक ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर की बेटी थी. जब उसके पिता की मृत्यु हो गई तो उसकी माँ उसे लेकर पेरिस आ गई. पेरिस में उसकी माँ के जितने सगे-सम्बन्धी थे, उन सबसे माँ ने उसका परिचय कराया. इसके पीछे माँ का एक ही उद्देश्य था, कि लड़की के लिए कोई योग्य वर प्राप्त हो जाए. दोनों माँ-बेटी निर्धन जरूर थीं, पर उनका शील स्वभाव बड़ा ही सहज, सुन्दर और सुरुचिपूर्ण था.

लड़की जैसी सुन्दर थी वैसी ही गुणवती भी थी. उसके व्यवहार में कुछ ऐसी शालीनता और शिष्टता पाई जाती थी कि कोई भी सुरुचिपूर्ण व्यक्ति उसकी प्रशंसा किये बिना न रह सकता था. लावण्य से परिपूर्ण उसके सलज्ज मुख पर एक सरस स्निग्धता और कोमल कमनीयता का भाव हर समय टपकता रहता था; और उसके अधरों पर एक अव्यक्त सी मुस्कान सब समय खेलती रहती थी, वह जैसे कि उसकी अंतरात्मा की पवित्रता का आभास झलकाती रहती थी. कुछ ही समय में उसके रूप-गुणों की ख्याति चारों ओर फ़ैल गई और लोग उसके बारे में अक्सर यह कहते पाए जाते थे कि- "जो भी व्यक्ति इससे विवाह करेगा वह बहुत भाग्यशाली होगा क्योंकि इससे अच्छी स्त्री दूसरी मिलना मुश्किल है."

मोशियो लाँताँ उस लड़की से पहले पहल अपने दफ्तर के छोटे साहब के घर पर मिले थे. उसे देखते ही उन्हें उससे पहली नज़र का प्यार हो गया. मोशियो की वार्षिक आय उस समय लगभग ढाई हजार रुपये थी. उन्होंने सोचा कि इतनी आय यद्यपि पर्याप्त नहीं है, फिर भी इतने में दो प्राणी अपना जीवन-निर्वाह कर सकते हैं. उन्होंने उस सुंदरी के समक्ष अपना विवाह प्रस्ताव रखा और उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया.

मोशियो लाँताँ उस सर्वगुणसंपन्न स्त्री को पाकर जैसे निहाल हो गए. वह घर गृहस्थी के कामों को ऐसे सुचारु ढंग से निभाती कि देखकर आश्चर्य होता. उनकी जेब से बहुत कम पैसे खर्च होते परन्तु वह उतने में ही घर के ठाट ऐसे बनाए रखती जैसे उसका विवाह किसी रईस के साथ हुआ हो. वह अपने पति की छोटी से छोटी आवश्यकता पर भी बहुत ध्यान देती और हर समय अपनी प्यार दुलार भरी बातों की बौछार किये रहती. उसके व्यक्तित्व में ऐसा विचित्र आकर्षण था कि विवाह के छः वर्ष बाद भी मोशियो लाँताँ को लगता कि जैसे पत्नी के प्रति उनका प्यार पहले की अपेक्षा बढ़ता ही जा रहा है.

हाँ, लेकिन दो बातें उस स्त्री के स्वभाव में ऐसी थीं जो उन्हें जरा कम पसंद आती थीं - एक था थिएटर देखने के प्रति श्रीमती लाँताँ का प्रेम और दूसरा था नकली गहनों का शौक.

उसकी सहेलियां अक्सर उसके लिए थिएटर में एक बॉक्स रिज़र्व करा लेतीं, और विवश होकर मोशियो को उसका साथ देना पड़ता. वैसे भी, दूसरों के पैसों से प्राप्त मनोरंजन के पक्षपाती मोशियो बिलकुल नहीं थे और उन्हें अपनी पत्नी का साथ देते हुए बहुत संकोच होता था. एक और बात यह भी थी कि उन्हें नाटकों में कोई विशेष रूचि न थी.

शुरू शुरू में तो मोशियो पत्नी के साथ नाटक देखने चल देते थे फिर उन्होंने अनुरोध किया कि वह उनकी बजाय अपनी किसी सहेली को ही नाटक में साथ लेकर जाया करे. पहले तो श्रीमती लाँताँ इस पर राजी नहीं हुईं पर ज्यादा जोर देने पर मान गईं. मोशियो इस प्रकार एक बहुत बड़े झंझट से मुक्ति पाकर बड़े प्रसन्न हुए.
मोशियो लाँताँ उस सर्वगुणसंपन्न स्त्री को पाकर जैसे निहाल हो गए. वह घर गृहस्थी के कामों को ऐसे सुचारु ढंग से निभाती कि देखकर आश्चर्य होता. उनकी जेब से बहुत कम पैसे खर्च होते परन्तु वह उतने में ही घर के ठाट ऐसे बनाए रखती जैसे उसका विवाह किसी रईस के साथ हुआ हो. वह अपने पति की छोटी से छोटी आवश्यकता पर भी बहुत ध्यान देती और हर समय अपनी प्यार दुलार भरी बातों की बौछार किये रहती. उसके व्यक्तित्व में ऐसा विचित्र आकर्षण था कि विवाह के छः वर्ष बाद भी मोशियो लाँताँ को लगता कि जैसे पत्नी के प्रति उनका प्यार पहले की अपेक्षा बढ़ता ही जा रहा है.

हाँ, लेकिन दो बातें उस स्त्री के स्वभाव में ऐसी थीं जो उन्हें जरा कम पसंद आती थीं - एक था थिएटर देखने के प्रति श्रीमती लाँताँ का प्रेम और दूसरा था नकली गहनों का शौक.

उसकी सहेलियां अक्सर उसके लिए थिएटर में एक बॉक्स रिज़र्व करा लेतीं, और विवश होकर मोशियो को उसका साथ देना पड़ता. वैसे भी, दूसरों के पैसों से प्राप्त मनोरंजन के पक्षपाती मोशियो बिलकुल नहीं थे और उन्हें अपनी पत्नी का साथ देते हुए बहुत संकोच होता था. एक और बात यह भी थी कि उन्हें नाटकों में कोई विशेष रूचि न थी.

शुरू शुरू में तो मोशियो पत्नी के साथ नाटक देखने चल देते थे फिर उन्होंने अनुरोध किया कि वह उनकी बजाय अपनी किसी सहेली को ही नाटक में साथ लेकर जाया करे. पहले तो श्रीमती लाँताँ इस पर राजी नहीं हुईं पर ज्यादा जोर देने पर मान गईं. मोशियो इस प्रकार एक बहुत बड़े झंझट से मुक्ति पाकर बड़े प्रसन्न हुए.

नाटक देखने के शौक के साथ ही साथ