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Description

जब कभी पति-पत्नी जाड़े के दिनों में अंगीठी के पास बैठे रहते तो श्रीमती लाँताँ अपने नकली गहनों से भरे चमड़े के बक्स को खोलकर उसमें एक-एक करके सब गहने निकालकर पास ही में रखी मेज पर सजाकर रखतीं और फिर प्यासी सी नजरों से उन्हें बहुत देर तक उनकी ओर एकटक देखती रहतीं. उसकी उस उत्सुकता भरी दृष्टि से ऐसा जान पड़ता जैसे कि उसके जीवन कि विशेष सुखद स्मृतियाँ उन गहनों से जुड़ी हैं. फिर वह उनमें से सहसा एक मोतियों का हार उठाकर मोशियो के गले में पहना देती और दुष्टतापूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहती - "तुम इस समय विचित्र स्वांगधारी लग रहे हो." इसके बाद वह बड़े प्यार और दुलार से मोशियो के बालों को सहलाने लगती. एक दिन बड़े कडाके की ठण्ड थी. श्रीमती लाँताँ उस दिन जब देर रात नाटक देखकर आईं, तो उसे सर्दी ने पकड़ लिया. उसे बुखार आ गया. आठ दिन तक वह बिस्तर पर पड़ी रही और फिर उसकी मृत्यु हो गई.

पत्नी की इस आकस्मिक मृत्यु उसे मोशियो लाँताँ को ऐसा सदमा लगा कि वे दुःख से विह्वल हो उठे और एक महीने में ही उनके सिर के सारे बाल पक गए. वे व्याकुल होकर दिन रात बस रोया करते. उन्हें ऐसा जान पड़ता कि प्रतिपल उनकी छाती को कोई बड़ी निर्दयता से फाड़े खाता है. पत्नी की प्रत्येक मुस्कान, प्रत्येक प्यार भरी बात, प्रत्येक अदा उन्हें याद आती रहती और उनके मर्म को छेदती रहती.

समय जैसे जैसे बीतता गया, मोशियो का दुःख घटने के बजाय बढ़ता चला गया. दफ्तर में जब कोई उनसे पत्नी की चर्चा छेड़ बैठता तो उनकी आँखों से बरबस आंसू उमड़ पड़ते. सारा संसार उन्हें अपनी जीवनसंगिनी के बिना सूना लगने लगा और चारो ओर निराशा ही निराशा दिखाई देने लगी.

धीरे - धीरे उन्हें अनुभव होने लगा कि पत्नी के बिना जीवन की सामान्य समस्याएँ भी अब उनसे ठीक तरह से हल नहीं होने पातीं. श्रीमती लाँताँ उनकी अत्यंत साधारण आय को भी न जाने कैसे सहेज-सहेज कर खर्च करती थीं कि उन्हें कभी एक दिन के लिए भी किसी तरह के अभाव का अनुभव नहीं हुआ; बल्कि उतनी ही आय में वह बहुत सी अनावश्यक चीज़ें जोड़कर मरी थी. पर अब मोशियो लाँताँ ने देखा कि उनका अपना निर्वाह ही उतने में नहीं हो पाता. उनकी पत्नी उतनी ही आय में कैसे बढ़िया बढ़िया खाद्य सामग्री लाकर उन्हें खिलाती थीं और खुद भी खाती थीं, यह बात उनकी समझ ही में नहीं आ पाती थी.

खैर, मोशियो लाँताँ को क़र्ज़ लेना पड़ा और धीरे धीरे उनकी निर्धनता ने विकट रूप धारण कर लिया. एक दिन तो नौबत यहाँ तक आ गई कि उन्हें कुछ खरीदना था और उनकी जेब में एक धेला भी न था. ऐसी हालत में उन्होंने भी वही सोचा जो अन्य कोई भी सोचता. उन्होंने घर की कोई चीज़ बेचकर रुपयों का प्रबंध करने का निश्चय किया.

अकस्मात् उन्हें याद आया कि उनकी पत्नी के नकली गहने उनके पास पड़े हैं. इन गहनों के प्रति शुरू से ही एक विद्वेष का भाव उनके मन में विद्यमान था. ये गहने उनके मन में पत्नी की सुखद स्मृति जगाने के बदले उसकी हठधर्मिता और कुरुचि की याद दिलाते थे. अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वह नित्य ऐसे नए, चमकीले और भड़कीले गहनों को खरीदकर अपने बक्स का बोझ भारी करती चली गई थी, जिनका मोल कम से कम उसके पति की नजरों में कुछ भी नहीं था. इसलिए मोशियो लाँताँ ने उन गहनों को बेच देने का निश्चय किया.

सबसे पहले उन्होंने मोती की लड़ियों वाले एक हार को बेचना चाहा, जिसका मूल्य उनके हिसाब चार - पांच रुपये के आसपास रहा होगा. उसे अपनी जेब में डालकर वे एक जौहरी की दूकान में जा घुसे. नकली मोतियों का वह हार जौहरी को दिखाते हुए उन्हें बहुत संकोच हो रहा था, पर जी कड़ा करके आखिर उन्होंने उसे जौहरी के सामने रख ही दिया.

"यह हार कितने का होगा, क्या आप बताने की कृपा करेंगे ?" उन्होंने बहुत साहस करके पूछा.

जौहरी उस हार को उठाकर बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से उसे परखने लगा. उसे अच्छी तरह से उलटपुलट कर परखने में बड़ी देर लग रही थी. मोशियो लाँताँ अधीर होकर यह कहना ही चाहते थे कि, "मुझे मालूम है इस नकली हार का मूल्य बहुत ज्यादा नहीं हो सकता है ;" पर वह कुछ कह पाते इससे पहले जौहरी बोल उठा, "महाशय, इस हार का मूल्य पंद्रह हजार फ्रैंक के लगभग है. पर इसे खरीदने के पहले मैं यह जानना चाहूँगा कि यह आपको कहाँ से मिला है ?"

मोशियो लाँताँ आँखें फाड़-फाड़ कर जौहरी की ओर देखते रह गए. उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. हकलाते हुए उन्होंने कहा, "आपने इसे अच्छी तरह से देख लिया है न ? क्या आप निश्चित रूप से कह सकते हैं कि इसका मूल्य इतना ही है ?"

जौहरी बोला, "इससे ज्यादा कोई दे, तो आप जाकर पता लगा लीजिये. किन्तु यदि पंद्रह हजार में ही देना तो आप मुझे ही दीजियेगा."

मोशियो लाँताँ भौचक्के से रह गए और हार को जेब में डालकर चुपचाप दुकान से बाहर चले आये. उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.