अतीव आनंद सहित आप सभी के सन्मुख प्रस्तुत करते है डॉ. जया सिंह जी की मधुरतम भावपूर्ण वाणी में श्री रामकिंकरीय चिंतन की वचनामृत श्रंखला के दो और अनमोल मोती, जिनके विषय है " संतत्व एवं स्थिरप्रज्ञता में सामंजस्य की आवश्यकता" तथा "दंभ और शील का समन्वय आवश्यक"
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