"प्रेम" एक ऐसी जगह है जिसमें स्वयं खोया तो जा सकता है किंतु उसे खोजा नहीं जा सकता। किसी ने प्रेम को "प्रेमैव ईशः" कहा तो किसी ने "Love is God" तो किसी ने कहा "प्रेम जीवन जीने का वास्तविक आधार" है ! क्या जीवन का सार प्रेम है या प्रेम जीवन के आनंदादि का स्रोत? ..प्रस्तुत है, जीवन के इन्हीं कुछ जटिल प्रश्नों के इर्द-गिर्द सरल समझ की तलाश करती एक लघु-वार्ता : "ढाई आखर प्रेम का" !!