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ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से...! ईर्ष्या एक ऐसा विष है...एक ऐसा जहर है..., जो इंसान को भीतर ही भीतर घुन की भांति विनष्ट कर देता है, इससे कैसे बचा जाए..?