रियासतों ने लूटा
अब सियासतें लूट रही हैं
बिन माँगे मिल गईं
अब विरासतें लूट रही हैं
गूँजता है शंखनाद
तो बहुत इकट्ठे हो जाते हैं
मासूम की सिसकियाँ
अब किसी को सुनाई नहीं देती
सर पे कफ़न, आँख पर पट्टी
ये कौन लोग हैं?
जिनको सच्चाई दिखाई नहीं देती
मज़हबों को रंग में बाँटा
फिर मिठाइयों का बँटवारा हुआ
अब क्या बाक़ी रह गया?
क्या आसमान भी बाँटोगे आपस में?
मिट्टी और हवा भी बँटेंगीं?
सुनो,
उन्हें क्या मिलेगा जिनका कोई खुदा नहीं?
©आलोक