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"श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 12" में भगवान श्रीकृष्ण त्याग की महिमा का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने शरीर में रहते हुए सभी कर्मों के फलों का त्याग करता है, वह सच्चा त्यागी है। ऐसा व्यक्ति न तो किसी कर्म के अच्छे परिणामों से बंधता है और न ही बुरे परिणामों से प्रभावित होता है। इस प्रकार का त्याग मनुष्य को आध्यात्मिक स्वतंत्रता की ओर ले जाता है और उसे सच्चे अर्थों में मुक्त करता है।

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