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श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 32 में भगवान श्रीकृष्ण तामसी बुद्धि की व्याख्या करते हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि जो बुद्धि अधर्म को धर्म और धर्म को अधर्म समझती है, और जो सभी चीजों को विपरीत रूप से देखती है, वह तामसिक बुद्धि कहलाती है। यह अज्ञान और मोह से ग्रसित होती है। जानें तामसी बुद्धि के लक्षण और इसे समझने का गूढ़ रहस्य।


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