श्लोक: सर्वगुह्यतमं भूय: शृणु मे परमं वच: |
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || 64||
यह श्लोक भगवद्गीता (अध्याय 18, श्लोक 64) का है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"मैं तुम्हें पुनः सबसे गोपनीय और परम उपदेश सुनाने जा रहा हूँ, क्योंकि तुम मेरे लिए अत्यंत प्रिय हो। यह उपदेश तुम्हारे कल्याण के लिए है।"
सर्वगुह्यतमं:
भगवान यहाँ "सबसे गोपनीय" ज्ञान की बात कर रहे हैं, जो सर्वोच्च भक्ति और आत्म-समर्पण से जुड़ा है।
इष्टोऽसि मे दृढम्:
भगवान अर्जुन को "अत्यंत प्रिय" कहते हैं। यह स्नेह और दिव्य संबंध को दर्शाता है।
हितम्:
भगवान अर्जुन के हित में उन्हें वह ज्ञान देने को तत्पर हैं, जो आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाएगा।
यह श्लोक भगवान के दिव्य प्रेम और करुणा का प्रतीक है। यह ज्ञान, भक्ति और आत्म-समर्पण के महत्व को प्रकट करता है, जो जीवन को मोक्ष और शांति की ओर ले जाता है।
#BhagavadGita #SpiritualWisdom #DivineLove #KarmaYoga #BhaktiYoga #KrishnaArjuna #SelfRealization #HinduPhilosophy #Moksha #BhagavadGitaQuotes
भगवद्गीता, श्रीकृष्ण, आध्यात्मिकता, भक्ति योग, कर्म योग, मोक्ष, अर्जुन, हिंदू दर्शन, शांति और कल्याण, प्रेरणादायक उद्धरण