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इस वीडियो में हम श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 7 का विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति केवल कष्ट या दुख के भय से कार्य का त्याग करता है, उसका त्याग राजसिक (रजोगुण से युक्त) कहलाता है और ऐसे व्यक्ति को त्याग का वास्तविक फल प्राप्त नहीं होता। जानिए कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से निभाने का महत्व और क्यों राजसिक त्याग से वास्तविक शांति और मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं होती।

Shloka:
"दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत् |
स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्॥"

इस श्लोक का हिंदी अनुवाद और उसकी गहरी व्याख्या भी प्रस्तुत की गई है।