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Description

वो जीवन की दिशाहीन क्रिया का सन्नाटा

ना बोलती चिडयों का गान

ना इठलाते मोर का विस्तार

ना पवन की ताल पर वृक्षों का राग



एक सन्नाटा था जीवन



होट बोलते पर ह्रदय निशब्द

कोलाहल उपकरणों का,

धुयें का धमाका

टूटता नभ, बिखरती धरा

मृत नदियों में अपना ही मल



एक बाह्य आक्रोश से परास्त मैं



सन्नाटा था तो प्राण बीज का

ना बोलता ना गाता ना सुनाता

बस राह देखता उस लय की

जिसपे उसका राग भी सज पाए



जब सब रुका सब ठहरा

तो उस निशब्द शून्य में प्रस्फुटित शक्ति

का एक नया सृजन



हुआ शून्य में एक सृजन

और जीवन राग चल निकला



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