मनुष्य के जीवन में उसकी हार का कारण उसके शत्रु कदापि नहीं होते, अपितु हार तो तब होती है जब आप के अपने ही, आप की पीठ में धोके से वार करते हैं।
सुनिए “कहानी रावण की”
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