माना कि...
जो मैंने किया वह प्रेम भी था
और लगाव भी...
मगर जो उसने किया वह स्वार्थ ही था
और जो दिया वह घाव ही...
घाव देते वक़्त उसने तनिक भी ना सोचा कि क्या होगा मेरा जो अपने मन के मंदिर में पूजता है उसे प्रेम की देवी...मोहब्बत का देवता बना कर...और क्या गुज़रेगी मेरे उस मन पर जब गुजर जायेगा
करीब से वो आंखे चुरा कर...