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 जब भगवान् श्रीकृष्ण पर लगा चोरी का आरोप

सूत्रधार की इस कहानी में हम सुनेंगे स्यमन्तक मणि के बारे में। स्यमन्तक मणि एक ऐसी मणि थी जिसमें स्वयं भगवान् सूर्यदेव का तेज समाहित था। वो मणि जिस भी राज्य में रहती उस राज्य में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती। अब ऐसी मणि को कौन नहीं पाना चाहेगा। स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मन में उस मणि को पाने की इच्छा जागी। बचपन में गोपियों से माखन चुराकर खाने के कारण भगवान् श्रीकृष्ण का एक नाम माखनचोर भी है। लेकिन इस बार जो आरोप भगवान् कृष्ण पर लगा था वो हंसी-खेल में करी गयी चोरी का नहीं था। इस बार आरोप लगा था दुनिया की सबसे मूल्यवान वस्तु की चोरी का। आरोप था कि श्रीकृष्ण ने चोरी की थी स्यमन्तक मणि की। क्या था इस आरोप का सच? क्या सच में चुराई थी श्रीकृष्ण ने वो मूल्यवान मणि? अगर नहीं, तो फिर उन पर ऐसा आरोप क्यों लगा? इन्ही प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे हमें आज की इस कथा में। भगवान् श्रीकृष्ण की पत्नियों जांबवंती और सत्यभामा के तार भी इसी कथा से जुड़े हुए हैं । तो फिर बिना समय व्यर्थ किये सुनते हैं इस रोचक कथा को और जानते हैं इससे जुड़े हुए सारे प्रश्नों के उत्तर।

 

अंधकवंशी यादवों के राजा सत्राजित भगवान् सूर्यदेव के परम भक्त थे। सत्राजित ने वर्षों तक सूर्यदेव की आराधना की। एक दिन सुबह-सुबह सत्राजित रोज की ही तरह सूर्य वंदना कर रहे थे, कि भगवान् सूर्यदेव स्वयं उनके सामने प्रकट हो गए। सत्राजित ने जब भगवान् आदित्य को साक्षात् अपने सामने खड़ा हुआ देखा तो हाथ जोड़कर वंदना करते हुए कहा,"प्रभु! आप जिस तेज से इस सारे संसार को प्रकाशित करते हैं, मुझे वह तेज देने की कृपा करें।" सत्राजित के ऐसा कहने पर भगवान् भास्कर ने उन्हें दिव्य स्यमन्तक मणि दी। यह मणि सूर्य के तेज से प्रकाशित थी और उसको अपने गले में पहनकर जब सत्राजित ने अपने नगर में प्रवेश किया तो सभी को लगा स्वयं सूर्यदेव पधारे हैं। 

 
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