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Description

द्वारका में नारद मुनि 

 

एक बार श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणि के साथ रैवतक पर्वत पर गए। वहाँ देवी रुक्मणि ने एक समारोह का आयोजन किया और श्रीकृष्ण स्वयं अतिथि सत्कार में लग गए। वो अतिथि सत्कार में कोई भी कमी नहीं रखना चाहते थे। इस समारोह में श्रीकृष्ण की पटरानियाँ और उनकी दासियाँ भी शामिल हुईं। 

 

जब श्रीकृष्ण, देवी रुक्मणि के साथ बैठे थे, तभी वहाँ नारद मुनि आए। श्रीकृष्ण और रुक्मणि ने नारद मुनि का अभिवादन किया और उन्हें अपने समीप स्थान पर बिठा दिया। आतिथ्य स्वीकार करने के पश्चात नारद मुनि ने श्रीकृष्ण को दैवीय पारिजात वृक्ष का पुष्प अर्पित किया। श्रीकृष्ण ने वह पुष्प नारद मुनि से लेकर अपने पास बैठी देवी रुक्मणि को दे दिया। देवी रुक्मणि ने पुष्प लेकर अपने बालों में सजा लिया।

 

यह देखकर नारद मुनि ने प्रशंसा करते हुए कहा, "देवी! यह पुष्प तो आपके लिए ही बना प्रतीत होता है। पारिजात वृक्ष का यह पुष्प अत्यन्त ही दैवीय है। यह एक वर्ष तक ऐसे ही खिला रहेगा और यह आपकी इच्छा के अनुरूप ही सुगन्ध प्रदान करेगा। यह पुष्प सौभाग्य लाता है और इसे धारण करने वाला निरोगी रहता है। एक वर्ष की समाप्ति के बाद यह अपने दैवीय वृक्ष पर वापस लौट जाएगा। यह पुष्प मरणशील प्राणियों की पहुँच से बाहर है और यह देवताओं तथा गन्धर्वों को अत्यन्त प्रिय है। देवी पार्वती प्रतिदिन इन पुष्पों को धारण करती हैं और देवी शची को भी यह इतने प्रिय हैं कि वे प्रतिदिन इनकी उपासना करती हैं।
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