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सतयुग के प्रारम्भ में ब्रह्माजी के आशीर्वाद से दक्ष प्रजापति की तेरह पुत्रियों का विवाह प्रजापति मरीचि के पुत्र कश्यप ऋषि के साथ हुआ। कश्यप ऋषि और उनकी पत्नियों से संसार में अनेक प्रजातियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति हुई। यह प्रसंग इन्हीं में से दो पत्नियों कद्रू और विनता के बारे में है। कद्रू के गर्भ से नागों और विनता से पक्षीराज गरुड़ और सूर्यदेव के सारथी अरुण का जन्म हुआ। क्या है इनके जन्म की कथा? क्यों है गरुड़ देव का नागों से बैर? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए सुनिए कद्रू और विनता की यह कथा। 

 

कश्यप ऋषि ने एक दिन अपनी पत्नियों से अपनी इच्छानुसार कोई भी वर माँगने को कहा। कद्रू ने एक हज़ार तेजस्वी पुत्रों की कामना की। विनता ने कहा,"मुझे कद्रू के एक हज़ार पुत्रों से भी तेजस्वी दो पुत्र हों।" कश्यप ऋषि उनकी इच्छा पूरी होने का वरदान देकर तप में लीन हो गए। 

 

समय आने पर कद्रू ने एक हज़ार और विनता ने दो अंडे दिए। उन्होंने अपने अण्डों को गरम बर्तनों में रख दिया। कई वर्षों बाद कद्रू के अण्डों से एक हज़ार नागों ने जन्म लिया परन्तु विनता के दिए हुए अंडे अभी भी नहीं फूटे। विनता ने जल्दबाजी दिखते हुए अपने एक अंडे को अपने हाथों से फोड़ दिया। अंडे से जिस शिशु का जन्म हुआ उसका शरीर पूरा विकसित नहीं हो पाया था। शिशु का ऊपरी हिस्सा तो हृष्ट-पुष्ट था लेकिन नीचे का हिस्सा पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया था। उस नवजात शिशु को अपनी माता के इस उतावलेपन पर बहुत क्रोध आया और उसने उसे शाप दे दिया,"माँ! तूने जिससे ईर्ष्यावश मेरे अधूरे शरीर को ही अंडे से निकाल दिया, तुझे उसी की दासी बनकर रहना होगा। इस शाप से तुम्हे तुम्हारा दूसरा पुत्र ही मुक्त कराएगा अगर तुमने उसको भी अंडे से बहार निकलने का उतावलापन नहीं दिखाया तो। अगर तू चाहती है की मेरा भाई अत्यंत बलवान बने और तुझे इस शाप से मुक्त करे तो धैर्य से काम ले और उसके जन्म होने की प्रतीक्षा करो।"

 

ऐसा कहकर वह बालक आकाश में उड़ गया और भगवान् सूर्य का सारथी अरुण बना। सुबह सूर्योदय के समय दिखने वाली लालिमा उसी अरुण की झलक है, इसीलिए उस झलक को अरुणिमा भी कहते हैं।

 
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