Barah x Barah | Short Review | Sajeev Sarathie
गंगा की अविरल बहती धारा और वो घाट जहां से कहते हैं दिवंगतों को मोक्ष का द्वार मिलता है। जाहिर है इस घाट के आस पास रहने वाले परिवारों का रोजगार इसी घाट के क्रिया कलापों से चलता है। सूरज इसी मणिकर्णिका घाट का फोटोग्राफर है जो दिवंगतों की अंतिम तस्वीर खींचता है उनके परिजनों के लिए। मगर मोबाइल के आने के बाद उसका ये काम आउटडेटेड हो चला है पर वो इस काम के प्रति अपना मोह नहीं छोड़ पा रहा। वहीं विकास की गति इस आदि शहर तक भी पहुंच चुकी है, उसका बनारस भी अब बदल रहा है और पुराने शहर के मोह में फंसे लोग इस परिवर्तन से भी असहज हैं।
बारह बई बारह में गौरव मदान बनारस के मणिकर्णिका घाट के आखिरी डेथ फोटोग्राफर की कहानी को बेहद तसल्ली से आपके सामने रखते हैं। फिल्म शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद आप खुद को सूरज का परिवार का हिस्सा सा समझने लगते हैं। फिल्म सांकेतिक रूप से भी बहुत कुछ बयां करते हुए चलती है। सूरज के पिता एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं पर अंतिम सांस गंगा किनारे ही लेना चाहते हैं। कभी पेशे से नाई रहे पिता दाढ़ी बनाकर अंतिम दिन से पहले घाट पर पहरों बिताते है। होली पर सबको साथ रहने को कहते हैं। वो शॉट जिसमें उनका पार्थिव शरीर कंधे पर लेकर सूरज निकलता है दुनिया रंग खेल रही होती है। ये दृश्य प्रतीक है कि जब दुनिया विकास का जश्न मना रही होती है तो विकास के पैरों तले दबे चंद लोग का मातम किसी को सुनाई नहीं देता।
ज्ञानेद्र त्रिपाठी और भूमिका दुबे का मैक्सिमम स्क्रीन स्पेस है ये दोनों किरदार आपके जेहन में छप से जाते हैं। गीतिका ओहलियान इन दिनों खूब नजर आ रही हैं। 12th फेल में दिखे हरीश खन्ना ने भी अपने अभिनय का दम दिखाया है। अगर कुछ अलग, रियलिस्टिक, और मीनिंगफुल देखना चाहते हैं तो बारह बई बारह को अवश्य देखें।
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