Listen

Description

आगमन / दिनेश कुमार शुक्ल 

जंगी बेड़ों पर नहीं

न तो दर्रा-खैबर से

आयेंगे इस बार तुम्हारे भीतर से वे

धन-धरती ही नहीं

तुम्हारा मर्म, तुम्हारे सपने भी वे छीनेंगे इस बार,

वे तुम सबके रक्त पसीने और आँसुओं

का बदलेंगे रंग

तुम्हारी दृष्टि तुम्हारा स्वाद

तुम्हारी खाल

तुम्हारी चाल-ढाल का भी बदलेगे ढंग,

बीजों के अंकुरण

और जीवों के गर्भाधान

नियंत्रित होंगे उनके कानूनों से

तुम्हें पता ही नहीं

तुम्हारी कविता में वे

पहले से ही घोल चुके हैं

अपने छल के छन्द

तुम्हारी भाषाओं के अंक मिथक किस्से मुहावरे

सिर्फ अजायबघर में अब पाये जायेंगे

देशों की सीमाओं का उनकी सेनायें

खुलेआम इस बार अतिक्रमण नहीं करेंगी

वे तो सिर्फ इरेज़र से ही 

मिटा रहे हैं देश-देश की सीमा रेखा

सात द्वीप-नवखण्ड और सातों समुद्र में

सिर्फ पण्य की सार्वभौम सत्ता का सिक्का

चला करेगा

इस एकीकृत विश्वग्राम के मत्स्य-न्याय में

एक साथ सब जीव जलेंगे दावानल में

जिंसों की इलहाम भरी 

नई खेप अवतरित हुई है

एक-भाव रस एक-एक भाषा में सारे

बन्दीजन गुणगान कर रहे हैं उसका ही

नये ब्रान्ड का प्रेम उतारा था बाज़ार में

जिसने पहले

लान्च किये हैं उसी कम्पनी ने

हत्या के नये उपकरण,

दाल-भात लिट्टी-चोखे की यादें आई हैं बाज़ार में

सोहर चैता कजरी की

स्वर लहरी के पाउच बिकते हैं


विश्व शान्ति के सन्नाटे में

सोनल चिड़िया अभी कहीं फड़फड़ा रही है आसमान में

नई रोशनी की गर्मी में

उसके पंख जले जाते हैं।