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Description

आना |  कैलाश मनहर

आऊँगा

बारिश से भीगे खेतों पर

क्वार की धूप बनकर

चमकता-सा....

आऊँगा

थके हुए बदन की रगों में

धारोष्ण दूध की तरह

उफनता-सा....

आऊँगा

रूठी हुई प्रेमिका की आँखों में

मानभरी लालिमा लिए

दमकता-सा....

आऊँगा

अकेले बच्चे के पास

नाचती हुई चिड़िया के परों में

लचकता-सा....

आऊँगा

मकई के दानों में बनकर

मिठास,

शरद के आसपास

सूर्योदय के साथ

चूमने को तुम्हारे खुरदरे हाथ

ज़रूर ज़रूर आऊँगा,

करना तुम -- इन्तज़ार....