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आँगन गायब हो गया | कैलाश गौतम

घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया

शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया ।

त्यौहारों का गला दबाया

बदसूरत महँगाई ने

आँख मिचोली हँसी ठिठोली

छीना है तन्हाई ने

फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया ।

शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके

गाँव अभागे दौड़ पड़े

रंगों की परिभाषा पढ़ने

कच्चे धागे दौड़ पड़े

चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया ।

नींद हमारी खोई-खोई

गीत हमारे रूठे हैं

रिश्ते नाते बर्तन जैसे

घर में टूटे-फूटे हैं

आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो गया ।