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Description

आँगन | रामदरश मिश्रा 

तने हुए दो पड़ोसी दरवाज़े 

एक-दूसरे की आँखों में आँखें धँसाकर

गुर्राते रहे कुत्तों की तरह

फेंकते रहे आग और धुआँ भरे शब्दों का कोलाहल

खाते रहे कसमें एक -दूसरे को समझ लेने की

फिर रात को

एक-दूसरे से मुँह फेरकर सो गये

रात के सन्नाटे में

दोनों घरों की खिड़कियाँ खुलीं

प्यार से बोलीं-

"कैसी हो बहना?"

फिर देर तक दो आँगन आपस में बतियाते रहे

एक-दूसरे में आते-जाते रहे

और हँसते रहे दरवाजों की कसमों पर।