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अब लौटना संभव नहीं है | अजय जुगरान

तुम्हारे साथ की यात्रा में 

अब लौटना संभव नहीं है। 

क्यों सब कुछ हो रीति में 

जब प्रीति कम नहीं है?

तुम्हारे साथ की यात्रा में 

अब लौटना संभव नहीं है।

चलो सीमापार स्वप्न में 

जहाँ रूढ़ि बंध नहीं है। 

क्यों यहाँ रहे नीति में बंद 

जब श्वास छंद वहीं है?

तुम्हारे साथ की यात्रा में 

अब लौटना संभव नहीं है।

यूँ देखो झाँक मुझमें

हृदय बुद्धि संग यहीं है। 

नहीं सब कुछ काम रीति में 

प्रेम मर्म यहीं है।

तुम्हारे साथ की यात्रा में 

अब लौटना संभव नहीं है।

क्या सुख ऐसे जीवन में 

जिसमें तू संग नहीं है?

अगर शून्य हम और मिले शून्य ही में 

तो निश्चिंत प्रेम का पर्यंक वहीं है!