अम्मा बचपन को लौट रही है | अजेय जुगरान
उठने को सहारा चाहे
अम्मा बचपन को लौट रही है।
चलने को सहारा चाहे
अम्मा छुटपन को लौट रही है।
बैठने को सहारा चाहे
अम्मा शिशुपन को लौट रही है।
ज़िद्द से न किनारा पाए
अम्मा बालपन को लौट रही है।
खाते खाना गिराए
अम्मा बचपन को लौट रही है।
सोने को टी वी चलाए
अम्मा छुटपन को लौट रही है।
नितकर्म को टालती जाए
अम्मा शिशुपन को लौट रही है।
बातों को दोहराती जाए
अम्मा बालपन को लौट रही है।
दिन में सो रातों को जगाए
अम्मा बचपन को लौट रही है।
अम्मा से बनी दादी - परनानी के साए
अवकाश प्राप्त कर हम घर लौट रहे हैं
और अम्मा, अम्मा बचपन को लौट रही है।
अभिभावक बने उसके ही प्रेम पलाए
आशीर्वाद को उसके हम घर लौट रहे हैं
और अम्मा, अम्मा बचपन को लौट रही है।