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Description

अंगूठे | अरविन्द श्रीवास्तव

बताओ, कहाँ मारना है ठप्पा

कहाँ लगाने हैं निशान

तुम्हारे सफ़ेद—धवल काग़ज़ पर

हम उगेंगे बिल्कुल अंडाकार

या कोई अद्भुत कलाकृति बनकर

बगैर किसी कालिख़, स्याही

और पैड के

अंगूठे गंदे हैं

मिट्ती में सने हैं

आग में पके हैं

पसीने की स्याही में ।