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अन्त में | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता,

सुनना चाहता हूँ

एक समर्थ सच्ची आवाज़

यदि कहीं हो।

अन्यथा

इसके पूर्व कि

मेरा हर कथन

हर मंथन

हर अभिव्यक्ति

शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए,

उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूँ

जो मृत्यु है।

‘वह बिना कहे मर गया’

यह अधिक गौरवशाली है

यह कहे जाने से—

‘कि वह मरने के पहले

कुछ कह रहा था

जिसे किसी ने सुना नहीं।’