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Description

औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’ 

किसी आँख में लहू है-

किसी आँख में पानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

पैदा हुई थी जिस दिन-

घर शोक में डूबा था।

बेटे की तरह उसका-

उत्सव नहीं मना था।

बंदिश भरा है बचपन-

बोझिल-सी जवानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

तालीम में कमतर है--

बाहरी हवा ज़हर है।

लड़का कहीं भी जाए-

उस पर कड़ी नज़र है।

उसे जान गँवा कर भी-

हर रस्म निभानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

कभी अग्नि परीक्षा में-

औरत ही तो बैठी थी।

होती थी जब सती तो-

औरत ही तो होती थी।

उसी जुल्म की बकाया--

पर्दा भी निशानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

कानून समाजों के-

एकतरफा नसीहत है।

जिसे दिल से नहीं चाहा-

वही प्यार मुसीबत है।

दौलत-पसन्द दुनिया-

मतलब की दीवानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

अब वक़्त है वो अपने-

आयाम ख़ुद बनाये।

तालीम हो या सर्विस-

अपने हकूक पाये।

मिलजुल के विषमता-

की दीवार गिरानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।

ससुराल सताये फिर-

मुमकिन ही नहीं होगा।

स्टोव जलाये फिर-

मुमकिन ही नहीं होगा।

दिन-चैन के आएँगे-

यह रात तो जानी है।

औरत की गुलामी भी-

एक लम्बी कहानी है।