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Description

(अ)विकल्प | किंशुक गुप्ता

तुम्हारी महत्वकांक्षाओं से माँ 

चटक गई है 

मेरी रीढ़ की हड्डी 

जिस लहज़े से तुमने पिता 

सुनाया था फ़रमान 

कि रेप में लड़की की गलती ज़रूर होगी

मैं समझ गया था 

मेरे धुकधुकाते दिल को
किसी भी दिन 

घोषित कर दोगे टाइम बम 

मेरे आकाश के सभी नक्षत्र 

अनाथ होते जा रहे हैं

चीटियों की बेतरतीब लकीरों से 

काली पड़ रही है 

सफेद पक्षी की देह 

चोंच के हर प्रहार से कठफोड़वा 
खोखला कर रहा है 

बोधी का वृक्ष 

जब रीतना ही अंतिम सत्य है 

तब यह कैसा विलंब

रीतना: खाली होना