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Description

आवारा के दाग़ चाहिए | देवी प्रसाद मिश्र

दो वक़्तों का कम से कम तो भात चाहिए

गात चाहिए जो न काँपे

सत्ता के सम्मुख जो कह दूँ

बात चाहिए कि छिप जाने को रात चाहिए

पूरी उम्र लगें कितने ही दाग़ चाहिए

मात चाहिए बहुत इश्क़ में फ़ाग चाहिए

राग चाहिए साथ चाहिए

उठा हुआ वह हाथ चाहिए नाथ चाहिए नहीं

कि अपना माथ चाहिए झुके नहीं जो

राख चाहिए इच्छाओं की भूख लगी है

साग चाहिए बाग़ चाहिए सोना है अब

लाग चाहिए बहुत विफल का भाग चाहिए

आवारा के दाग़ चाहिए बहुत दिनों तक गूँजेगी जो

आह चाहिए जाकर कहीं लौटकर आती राह चाहिए

इश्क़ होय तो आग चाहिए।