बच्चे के शिक्षक को पत्र - राजेंद्र उपाध्याय
उसे नदियों और पेड़ों
और पर्वतों के बारे में बताना
उसे बरगद के बारे में बताना
तो कली और तुलसी के बारे में भी
नीम और पीपल, बादल और बिजली
के बारे में बताना
अजगर, हाथी, घोड़ों के बारे में बताते हुए
बेचारे एक केंचुए को न भूल जाना
उसे जीतना सिखाना
पर हारने के सुख के बारे में भी बताना
कमाई की एक पाई बड़ी है
भीख में मांगे गए रुपए से उसे बताना।
झूठ बोलकर जीतने से बेहतर है
खेल हार जाना सच पर रहकर।
येे सब सीखने में उसे
समय लगेगा
समय सिखाएगा उसे बहुत-सी चीजें
हम तुम, नहीं।
आज-कल में नहीं
एक दो दिन में नहीं
धीरे-धीरे जान पाएगा
बुरे-भले के बारे में
खरे-खोटे के बारे में
उसे बड़ा आदमी नहीं
भला आदमी बनाना
वह सिक्कों की खनक न सुने हमेशा
उसे अंधे को रास्ता पार कराने
और कबूतर के घाव धोने का
वक्त मिले हमेशा
किताबों में जो लिखा है उसे पढ़ाना
उसे तारों और आकाशगंगाओं के बारे में भी
जुगनुओं और केंचुओं और
तितलियों की दुनिया में भी
उसे कुछ देर ले जाना
एलिस के आश्चर्यलोक में
शेर की मांद में, मछलियों के अजब संसार में
उसे कुछ देर भटकने देना
फूलों वाली घाटी में
हमेशा उसकी उंगली पकड़कर मत चलना
भरे बाज़ार उसे अकेला भी छोड़ना
तूफानी लहरों के विरुद्ध विपरीत दिशा में
तैरना भी उसे सिखाना
उसके घुटने छिल जाएँ तब भी
परवाह न करना।
दूसरों पर नहीं अपने पर
हँसना सिखाना उसे
दूसरों को देखकर जलना नहीं
अपने पर अफसोस करना
अपने विश्वासों पर अडिग रहना
पर बदलना जरूरत पड़ने पर उन्हें अगर उनकी कलई उतर गई हो
भले लोगों को जीतना भलाई से
कड़े लोगों को कड़ाई से
पर पहले भलाई से
भीड़ में वह शामिल न हो
एक कोने में खड़ा होकर वह अपनी बारी की प्रतीक्षा करे
भले ही प्रतीक्षा में बीत जाए सारा जीवन
अन्याय के खिलाफ हाथ उठाने में वह आगे आए
वह आवाजें ऊँची करें अपनी
उनके लिए जिनकी आवाजें नहीं हैं
चाटुकारों से वह सावधान रहे
जो बहुत मीठे हैं उनसे वह बाज़ आए
वह अपना शरीर और अपना ज्ञान
देश सेवा में लगाए
पर कभी भी वह बेचे न अपनी
आत्मा को चंद रुपयों की खातिर
यह सब सिखाना उसे प्यार से मगर धीरे-धीरे
पर पुचकार कर नहीं हमेशा
आग में उसे तपाना
तभी बनेगा वह इस्पात मज़बूत इतना
यह सब करना होगा तुम्हें
पर यह सब इतना आसान नहीं
यह करना ही होगा तुम्हें मेरे दोस्त
उसे भला इंसान अगर बनाना है!