Listen

Description

बर्फ़ , समंदर और ग्लेशियर - सूर्यबाला

 

सांसें पहाड़-सी टूटी पड़ रही हैं मुझ पर-

और मैं नदी सी बिछलती

धाराधार बहती जा रही हूँ

अपने ओर-छोर की नियति से बेखबर

आकांक्षाहीन...

समंदर हो जाने की

या बर्फ बन जम जाने की

कुछ भी हो सकता है

लेकिन

बहुत सालों बाद

जब टूटेंगे ग्लेशियर

बहेंगे महानद

तब क्या कोई समझेगा?

कि, कभी यह महानद-

मात्र बरूनियों पर उलझी

एक बूंद हुआ करती था!..