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Description

भूखदान | महबूब  

शांत अंधेरे सन्नाटे के बीच 

चीखती गुजरती एक आवाज़ 

लोहे के लोहे से टकराने की

या उस भूखे पेट के गुर्राने की 

जो लेटा है उसी लोहे के सड़क किनारे 

किसी भिनभिनाती-सी जगह पर 

खेल रही हैं कुछ मक्खियाँ उसके मुख पर

जैसे वो जानती हों कि गरीब यहाँ सिर्फ खेलने की चीज है 

इस बीच कुछ लोग गुज़रे उधर से उसे निहारते हुए

कोई हँसा कोई मुस्कुराया 

किसी को घृणा हुई किसी ने अफसोस जताया 

आखिर करते भी क्या बेचारे 

इंसान जो ठहरे 

इनके पास कहाँ इतना वक्त 

कि जिस थाली के सिर्फ दो निवाले खाने के बाद 

उससे कूड़े दान का पेट भर दिया गया 

उसी थाली से उस पेट को भर दे

जिसमें से आ रही थी वह सन्नाटे को चीरने वाली आवाज 

और वो शख्स अभी भी 

घुटनों से पेट को जकड़े हुए 

हाथों से घुटनों को पकड़े हुए

इसी इंतज़ार में बैठा है कि कोई तो अपनी

झूठी थाली कूड़ेदान को ना देकर भूखदान को देगा