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Description

चार प्रेम कविता | मधुसुदन आनंद

यह जो तुम्हारे हमारे बीच हुआ

और जो हो रहा है

और जो होता रहेगा

उसे कभी भूलकर भी

मत कहना प्रेम...

 

यह महाविस्फोट के कोई

तेरह अरब सत्तर करोड़ साल बाद

मलबे के दो छोटे-छोटे टुकड़ों का

आपसी आकर्षण है

जिसके लिए सारा यूनिवर्स

तमाम आकाशगंगाएँ और सौरमंडल

और तारे कम पड़ गए

 

सिर्फ पृथ्वी ही बनी वह जगह

जो खुद तमाम खिंचावों

और बलों के बावजूद

हमारे लिए एक रस्सी की तरह तन गई

 

पृथ्वी ने ही किया हमारा कायांतरण

एक तरफ से तुम

दूसरी तरफ से मैं

रस्सी पर चढ़ गए

 

आधी दूरी तक तुम

आधी दूरी तक मैं

इस रस्सी पर चल कर आते हैं

न तुम मेरे बीच से

निकल पाती हो और ना मैं

दोनों एक-दूसरे को छू कर 

वापस लौट आते हैं

सिरों पर और फिर चल पड़ते हैं

यह सिर्फ एक यात्रा है आधी-अधूरी

 

प्रेम होता तो मैं तुम में मिल जाता

या तुम मुझसे

और इस तरह

कोई तो एक सिरे से

दूसरे सिरे तक पहुँच जाता।