Listen

Description

 चिट्ठी है किसी दुखी मन की |  कुँवर बेचैन 

बर्तन की यह उठका-पटकी

यह बात-बात पर झल्लाना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।

यह थकी देह पर कर्मभार

इसको खाँसी, उसको बुखार

जितना वेतन, उतना उधार

नन्हें-मुन्नों को गुस्से में

हर बार, मारकर पछताना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।

इतने धंधे! यह क्षीणकाय-

ढोती ही रहती विवश हाय

खुद ही उलझन, खुद ही उपाय

आने पर किसी अतिथि जन के

दुख में भी सहसा हँस जाना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।