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Description

चुपचाप उल्लास | भवानीप्रसाद मिश्र

हम रात देर तक

बात करते रहे

जैसे दोस्त

बहुत दिनों के बाद

मिलने पर करते हैं

और झरते हैं

जैसे उनके आस पास

उनके पुराने

गाँव के स्वर

और स्पर्श

और गंध

और अंधियारे

फिर बैठे रहे

देर तक चुप

और चुप्पी में

कितने पास आए

कितने सुख

कितने दुख

कितने उल्लास आए

और लहराए

हम दोनों के बीच

चुपचाप !