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Description

चर्चगेट का प्लेट्फॉर्म | अनूप सेठी

शाम के समय जब प्लेटफॉर्म बहुत व्यस्त होता है

ढलती धूप के चौकोर टुकड़े

पैरों से खचाखच भरते जाते हैं

रीत जाते हैं फिर भर जाते हैं

दीवारों पर लगे बड़े पँखों की हवा में

साँस लेने पसीना सुखाने

किसी का इंतज़ार करने को

रुक जाते हैं कई लोग

दो-दो मिनट में लोगों का रेला आता है

दनदनाता धकियाता

छूता आसपास

गुजर जाता है

जैसे टयूब वैल का बंबा

छूटता है रुक रुक कर

कलकल करता सिहराता जज़्ब हो जाता है

खेतों की मिट्टी के रग रेशे में

बहुत सारे पैरों को

प्लेटफॉर्म की रोशनी के हवाले कर

धूप चली जाएगी मैरीन ड्राइव की तरफ़

समुद्र में उतर जाएगा सूरज

नई दुनिया की टोह लेता

दो-दो मिनट में लोगों का रेला

दिन भर के काम से थका

ट्रेनों में ठुँस कर निकल जाएगा

घरों की दूसरी दुनिया को

ट्यूब वेल के बंबे का छलछलाता पानी

मिट्टी के रग रेशे में जान डालता है

ठंडी ताज़ी महक सी उठती है

पसीने में रची हुई

बड़े पँखों की हवा के नीचे

बेहद व्यस्त प्लेटफॉर्म

बहुत सारे शोर में

उम्मीद की आहट देता है

चर्चगेट बहुत सुन्दर दिखता है।