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Description

धूप | रूपा सिंह

धूप!!

धधकती, कौंधती, खिलखिलाती

अंधेरों को चीरती, रौशन करती।

मेरी उम्र भी एक धूप थी

अपनी ठण्डी हड्डियों को सेंका करते थे जिसमें तुम!

मेरी आत्मा अब भी एक धूप

अपनी बूढ़ी हड्डियों को गरमाती हूँ जिसमें।

यह धूप उतार दूँगी,

अपने बच्चों के सीने में

ताकि ठण्डी हड्डियों वाली नस्लें

इस जहाँ से ही ख़त्म हो जाएँ।