दुआ | मनमीत नारंग
कतरनें प्यार की
जो फेंक दीं थी बेकार समझकर
चल चुनें तुम और मैं
हर टुकड़ा उस नेमत का
और बुनें एक रज़ाई
छुप जाएं सभी उसमें आज
तुम मेरे सीने पे मैं उसके कंधे पर
सिर रखकर रो लें ज़रा
कुछ हँस दें ज़रा
यूँ ही ज़िंदगी गुज़र बसर हो जाएगी
शायद यह दुनिया बच जाएगी