दुख | प्रियाँक्षी मोहन
पिताओं के दुख
माँओं के दुखों से
मुख़्तलिफ़ होते हैं।
वे कभी भी प्रत्यक्ष
रूप से नहीं दिखते
वे चूहों से झाँकते हैं
अधजली सिगरेटों से
खूटियों पर टंगी हुई
थकी कमीज़ों से,
पुरानी ऐनकों से,
और बिजली व जल
विभाग के निरंतर
बह रहे बिलों से