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एक छोटा सा अनुरोध | केदारनाथ सिंह

आज की शाम

जो बाज़ार जा रहे हैं

उनसे मेरा अनुरोध है

एक छोटा-सा अनुरोध

क्यों न ऐसा हो कि आज शाम

हम अपने थैले और डोलचियाँ

रख दें एक तरफ़

और सीधे धान की मंजरियों तक चलें

चावल ज़रूरी है

ज़रूरी है आटा दाल नमक पुदीना

पर क्यों न ऐसा हो कि आज शाम

हम सीधे वहीं पहुँचें

एकदम वहीं

जहाँ चावल

दाना बनने से पहले

सुगन्ध की पीड़ा से छटपटा रहा हो

उचित यही होगा

कि हम शुरू में ही

आमने-सामने

बिना दुभाषिये के

सीधे उस सुगन्ध से

बातचीत करें

यह रक्त के लिए अच्छा है

अच्छा है भूख के लिए

नींद के लिए

कैसा रहे

बाज़ार न आए बीच में

और हम एक बार

चुपके से मिल आएँ चावल से

मिल आएँ नमक से

पुदीने से

कैसा रहे

एक बार... सिर्फ़ एक बार...