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Description

एक फ़ैंटसी | धर्मवीर भारती

साँझ के झुटपुटे में,

जब कि दूर आस्माँ पर एक धुआँ-सा छा रहा था,

तारे अकुला रहे थे, चाँद थर्रा रहा था

चोट इतनी गहरी थी,

कि बादलों के सीने से ख़ून उबला आ रहा था,

पास की पगडंडी से

एक राही कंधों पर

अपनी ही लाश लादे धीमे-धीमे जा रहा था

गीतों के कंकाल झूठे प्यार के मसान में,

धधकती चिताओं के पास बैठे गा रहे थे,

अपने सूखे हाथों से,

अपनी पसलियों को तोड़-तोड़

चूर-चूर कर चिताओं पर बिखरा रहे थे!

एक जलते मुर्दे ने

अपनी जलती उँगलियों से

ऊँची-नीची बालू पर इक खींच दी लकीर!

और हँस कर बोला :

“यह है प्यार की तस्वीर!