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Description

एक समय था- रघुवीर सहाय

एक समय था मैं बताता था कितना

नष्ट हो गया है अब मेरा पूरा समाज

तब मुझे ज्ञात था कि लोग अभी व्यग्न हैं

बनाने को फिर अपना परसों कल और आज

आज पतन की दिशा बताने पर शक्तिवान

करते हैं कोलाहल तोड़ दो तोड़ दो

तोड़ दो झोंपड़ी जो खड़ी है अधबनी

फ़िज़ूल था बनाना ज़िद समता की छोड़ दो

एक दूसरा समाज बलवान लोगों का

आज बनाना ही पुनर्निर्माण है

जिनका अधिकार छीन जिन्हें किया पराधीन

उनको जी लेने का मिलता प्रतिदान है।